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होमियोपैथिक डिसपेंसरी से हुई थी आश्रम की स्थापना


Gadwal:

महान अध्यात्मिक संत रामकृष्ण परमहंस का जन्मोत्सव मोरहाबादी स्थित आश्रम में 25 फरवरी को मनाया जाएगा। रांची एवं आसपास के सात हजार लोग जुटेंगे। अनुष्ठान की शुरुआत सुबह पांच बजे मंगलआरती से होगी। 7.30 बजे चंडीपाठ एवं भजन कीर्तन होगा। 10.30 बजे से श्रीरामकृष्ण के जीवन पर उपदेश दिया जाएगा। 11 बजे हवन के उपरांत 12 बजे से प्रसाद वितरण होगा। संध्या 6.15 बजे आरती एवं भजन के साथ अनुष्ठान समाप्त होगा। स्वामी विवेकानंद की प्रेरणा से इस आश्रम की शुरुआत 1927 में होमियोपैथी डिसपेंसरी से हुई थी। स्वामी विशुद्धानंद जी महाराज एक छोटे से खपड़ैल घर में एक ब्रह्माचारी के साथ रहते थे। उनकी सादगी और त्याग-तपस्या से गरीब तबके के लोग काफी प्रभावित हुए और उनके पास नियमित रूप से आने लगे। आश्रम में प्रत्येक शनिवार को कथामृत पाठ शुरू हुई। रामकृष्ण परमहंस के माता-पिता गया में आए थे पूर्वजों का श्राद्ध करने

रामकृष्ण परमहंस का जन्म 18 फरवरी(फाल्गुन कृष्ण पक्ष सप्तमीं तिथि) 1836 को पश्चिम बंगाल के कमारपुकुर गांव में हुआ था। पिता का नाम खुदीराम चटोपाध्याय और माता का नाम चंद्रा देवी था। कहा जाता है कि एक बार परमहंस के माता-पिता अपने पूर्वजों का श्राद्ध करने बिहार के गया पहुंचे। विष्णुधाम में दर्शन के उपरांत आभास हुआ कि प्रभु उनके घर जन्म लेंगे। कुछ दिनों बाद माता चंद्रा के गर्भ से एक बालक का जन्म हुआ तो माता-पिता को गया संस्मरण ध्यान आया। इस कारण परमहंस का बाल नाम गदाधर रखा गया। गदाधर बचपन से ही तीक्ष्ण प्रतिभा के थे। प्रभु भक्ति में ही डूबे रहते थे। मां काली के प्रति उनकी सच्ची आस्था थी। कहा जाता है कि मां काली उन्हें साक्षात दर्शन देती थीं।

जीवन पर्यत जात-पात व धार्मिक कंट्टरता का करते रहे विरोध

रामकृष्ण परमहंस ने जीवन पर्यत जात-पात व धार्मिक कट्टरता का विरोध किया। अध्यात्म को स्वयं से साक्षात्कार के माध्यम के रूप में प्रचारित किया। उनके तीन संदेश जीव मात्र की सेवा, सबके प्रति दया और सेवा कार्य को आधार मानकर रामकृष्ण आश्रम देश-दुनियां में शांति-सद्भाव के कार्य में जुटी हुई है। उनके संदेश को जन-जन तक पहुंचाने में परम शिष्य स्वामी विवेकानंद की महती भूमिका रही। आज देशभर में 17 सौ संन्यासी नि:स्वार्थ भाव से समाज सेवा में जुटे हुए हैं। स्वामी विवेकानंद के प्रयास से सबसे पहले बेल्लूर मठ की स्थापना 1897 में कोलकता में हुई। इसके बाद देश के अन्य स्थानों पर आश्रम की स्थापना की गई। स्वामी विवेकानंद की प्रेरणा से रांची में हुई आश्रम की स्थापना

रांची में रामकृष्ण आश्रम की स्थापना 1927 में हुई थी। रामकृष्ण मिशन रांची आश्रम के सचिव स्वामी भवेशानंद के अनुसार रांची क्षेत्र की आवोहवा व मिट्टी को देखकर स्वामी विवेकानंद खुद रांची के आसपास आश्रम खोलने की इच्छा जाहिर की थी। बाद में कोलकाता आश्रम के स्वामी विशुद्धानंद के अथक प्रयास से मोरहाबादी में आश्रम के लिए स्थल का चयन किया गया। बाद में ग्रामीण क्षेत्र के विकास के लिए 1967 में दिव्यायन कृषि विज्ञान केंद्र खोला गया।

डोरंडा में छोटे से कमरे में होता था राकृष्ण नाम का पाठ

रांची में आश्रम की स्थापना के साथ एक रोचक कहानी जुड़ी हुई है। स्वामी भवेशानंद के अनुसार डोरंडा के एक छोटे से कमरे में आश्रम शुरू हुई थी। तब एजी ऑफिस में कार्यरत आशुतोष घोष रामकृष्ण परमहंस से मिलने बराबर दक्षिणेश्वरी काली जाया करते थे। इससे पूर्व शिलांग व ढाका में पोस्टिंग के दौरान अपने घर में ही रामकृष्ण कथामृत पाठ का नियमित आयोजन किया करते थे। पाठ में काफी लोग जुटते थे। रांची आने के बाद पाठ बंद हो गया। एक बार आशुतोष घोष को सपने में रामकृष्ण परमहंस का दर्शन हुआ। सपना टूटा तो स्वयं उनका दर्शन हुआ। उन्होंने कहा कि रांची आकर तुम मुझे क्यों भूल गये? ऐसा कह कर रामकृष्ण अंतध्र्यान हो गये। इसके बाद से ही आशुतोष घोष नियमित रूप से पाठ का आयोजन करने लगे।

जब देवघर में गरीबों की मदद का हठ कर बैठे रामकृष्ण

1880 के दशक में रामकृष्ण परमहंस कोलकाता के जमींदार मथुरा नाथ के साथ ट्रेन से तीर्थ के लिए काशी जा रहे थे। संयोग से देवघर में उनका अल्प विराम हुआ। इस दौरान कई लोग उनसे मिलने आ पहुंचे। इसमें कई गरीब थे जिनके तन पर न तो ठीक से कपड़ा था और न भोजन का ठिकाना। दीन-दुखियों की स्थिति देख रामकृष्ण साथ में आये जमींदार से मदद करने की जिद कर बैठे। उनकी जिद देखकर जमींदार को कोलकाता से पैसा, कपड़ा आदि मंगवाना पड़ा। इसके बाद ही परमहंस देवघर से आगे बढ़े।

आश्रम के कई संन्यासी मुस्लिम व ईसाई

रामकृष्ण परमहंस मानव मात्र से प्रेम के पक्षधर थे। उनका मानना था कि अलग-अलग लोगों के प्रभु भिन्न हो सकते हैं, लेकिन गंतव्य एक ही है। एक ही परम ईश्वर के सभी संतान हैं। स्वामी भवेशानंद के अनुसार रामकृष्ण आश्रम में धर्म-जाति में भेद नहीं किया जाता है। देशभर के 17 सौ संन्यासियों में कई मुस्लिम और ईसाई धर्म के भी हैं।

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