गरीबी की घर में पले व बढ़े तीन बच्चों की संघर्ष भरी जीवन की कहानी लाचार बच्चों के हौसलों की उड़ान को पंख दे सकती है। तीनों बच्चे नक्सल क्षेत्र के लिए बदनाम देव प्रखंड के हैं, जो आइआइटी में दाखिला लेकर अपनी जीवन को संवार रहे हैं।
देव में एक छोटा-सा किराना एवं जेनरल स्टोर की दुकानदार राजेश कुमार उर्फ राजू कुमार चलाते हैं। उनका बेटा शुभम कुमार आइआइटी कानपुर में तृतीय वर्ष में पढ़ाई कर रहा है। इसी प्रखंड के एक निजी विद्यालय में पढ़ाकर अपने परिवार का भरण पोषण कर रहे भवानीपुर गांव निवासी प्रभाकर सिंह का पुत्र आकाश कुमार आइआइटी रुड़की में दाखिला लेकर बीटेक की तृतीय वर्ष में पढ़ाई कर अपनी जीवन में उड़ान भरने को संघर्ष कर रहा है।
देव के ही साधारण परिवार से तालुक रखने वाला राजेश कुमार गुप्ता का पुत्र हर्षदेव दिल्ली टेक्नोलॉजी लॉजिकल यूनिवर्सिटी (डीयूटी) में दाखिला लेकर इलेक्ट्रिक ब्रांच से बीटेक की दूसरे वर्ष की पढ़ाई कर रहा है।
तीनों बच्चों ने आर्थिक तंगी से लड़ते हुए यह मुकाम हासिल की है। तीनों बच्चे मैट्रिक की परीक्षा पास करने के बाद पूर्व डीजीपी अभयानंद के मार्गदर्शन में गया में संचालित मगध सुपर थर्टी में रहकर निशुल्क पढ़ाई की। फिर जेईई की परीक्षा पास कर आइआइटी में दाखिला लिया। गरीबी में जीवन जीने के बावजूद इन बच्चों ने अपनी मंजिल के रास्ते से भटके नहीं और जीवन की मंजिल की ओर बढ़ते रहे।
आकाश ने बताया कि बहुत साधारण परिवार से आते हैं, और आइआइटी में दाखिला लेना मेरे लिए काफी मुश्किल भरा डगर था। पर शिक्षा के बदौलत हम इस मुकाम को पा लिया। शुभम ने बताया कि कोई भी छात्र के लिए आइआइटी में सफलता पाना कठिन नहीं हैं। बजाप्ता कठिन परिश्रम और संघर्ष करना होगा। मन लगाकर पढ़ाई करना होगा। हर्षदेव ने कहा पढ़ाई में गरीबी बाधा कभी नहीं बन सकती है। शिक्षा के बदौलत गरीबों के बच्चे भी जीवन का मंजिल पा सकते हैं। पर इसके लिए उन्हें सतत पढ़ाई के साथ मेहनत करनी होगी। तीनों बच्चों ने कहा कि पूर्व डीजीपी का मार्गदर्शन और मगध सुपर थर्टी के गीता मैडम व पंकज कुमार का सहयोग मिला तभी हमलोगों का जीवन चमका। रविवार को जब अभयानंद देव पहुंचे तो तीनों बच्चे उनसे मिले।
कहते हैं पूर्व डीजीपी सुपर थर्टी के जनक अभयानंद कहते हैं कि परिश्रम और संघर्ष के बदौलत हर मुसीबतों को दूर किया जा सकता है। किसी भी बच्चे को पढ़ाई का अच्छा माहौल और अच्छा समाज मिले तो वे बेहतर कर सकते हैं। ये बच्चे संघर्ष के बदौलत ही अपनी जीवन का मुकाम हासिल किए हैं।
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